
असुविधा : वरवरराव के लिए आयरिश कवि गैब्रिएल रोजेनस्टॉक की कविता
वरवरराव के लिए
- गैब्रिएल रोजेनस्टॉक
भारत
क्या देवी सरस्वती मुस्कराई थीं
जब तुमने अपने कवियों को गिरफ़्तार किया
जब पेशाब के डबरे पर बैठे
कोविड के शिकार वे मतिभ्रमित हुए
क्या सरस्वती प्रसन्न हुईं?
– वरवराराव मैं भेजता हूँ तुम्हें ये शब्द
कि सूर्य की रौशनी के बीच
बिखरे हुए धूल कणों में
वे चमक सकते हैं –
ओह्ह भारत !
क्या तुमने भोर की रौशनी को
या चाँदनी को
या सूदूर के तारों की रौशनी को
बिना जांच
उनके क़ैदखाने तक जाने की इज़ाज़त दी थी?
भारत!
सरस्वती की दिव्य मुस्कराहट
उनके होठों में डूब रही है.
(अनुवाद : अशोक कुमार पाण्डेय)
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