नाकोहस पढ़ते हुए कुछ फुटकर नोट्स
मगर चिराग़ ने लौ को संभाल रखा है[1] · अशोक कुमार पाण्डेय —————————- नाकोहस जब कहानी के रूप में आई थी तब इस पर टिप्पणी करते लिखा था – “समय का बदलना अक्सर महसूस नहीं होता. उसे कुछ प्रतीकों के सहारे पढ़ना होता है. और यह “पाठ” भी क्या होता है? दरअसल यह जितना…