Paperback: 160 pages
Publisher: Rajpal and Sons; First edition (15 January 2019)
Language: Hindi
ISBN-10: 9386534681
ISBN-13: 978-9386534682
Package Dimensions: 21.6 x 14 x 0.9 cm
सबके मन के अँधेरे का कोलाज
क्या हम सिर्फ मजबूत लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं? कमजोरों के हक की लड़ाई में कमजोरों के लिए कोई जगह नहीं?
(और कितने यौवन चाहिए ययाति ?)
ये पंक्तियाँ सिर्फ इस कहानी की पंक्तियाँ नहीं हैं.ये अशोक कुमार पाण्डेय की कहानियों की समूल चिंता है. संग्रह की सारी कहानियां आदर्श,थ्योरी और ज़मीनी वास्तविकता के विरोधाभास से मुठभेड़ करती हैं. एक पर्यवेक्षक की तरह अशोक अपनी कहानी में घटने वाली परिस्थितियों को दर्ज करते जाते हैं मुस्तैदी से. ज़ाहिर है फिर उन परिस्थतियों के बरक्स सवाल भी उठ खड़े होते हैं. पैने और नुकीले ! और सपनीली आशाओं से भरे भी.
कहानी का पात्र मानों लेखक अशोक ही है जो एक उदास समझदारी से कहता है ‘कुछ चीज़ें थोड़ी दूर से ही साफ़ दिखाई देती हैं’. एक लेखक जब इस स्वर में बात कहने लगता है तो वह कहानी से परे जाकर ज़िन्दगी दर्ज करने लगता है. एक ज़िन्दगी जो गुज़र चुकी है और एक ज़िन्दगी जो आने वाली है. सबकी झलक अशोक की कहानियों में मौजूद है. फिर चाहे वह एक औरत का कोमल मन हो जो उस तितली के रंग में परत दर परत बड़ी मुलायामियत से खुलता है और धीमे से कह उठता है कि आज भी स्त्री सारे विमर्शों के बावजूद ठगी ही जा रही है या वह एक जंगल है जो जंगल के मेटाफर से बना दरअसल सबके मन के अँधेरे का कोलाज है या एक सिस्टम की नाकामी है,जहाँ शिल्प बदल- बदल कर नए तेवर से एक दूसरी कहानी आह्वान करतीहै – इस देश में मिलिट्री शासन लगा देना चाहिए.
और फिर बात वहीँ रूकती नहीं आगे बढ़ एक भयावह ख्याल का तस्सवुर होने लगता है कि कहीं हम मनुष्य के बजाय ऑटोमेटेड मशीनों में न तब्दील हो जाएँ और प्रेम और स्मृति जैसे मानीखेज लफ़्ज़ों को पूरी तरह भूल जाएँ. हम अपने इर्द-गिर्द कहीं ऐसी दुनिया न खड़ी कर लें जिसमें सबकुछ टेक्नोलॉजी द्वारा संचालित हो. कहानी कूपन में स्मृति इस नए विषय पर ऐसी चिंता करती एक निराली फ्यूचरिस्टिक कहानी है जो बतौर कहानीकार अशोक की रेंज का बड़ा वितान खींचती है.
इस हरफनमौला रचनाकार ने कविता की विधा में बहुत यश कमाया है.इनकी किताब कश्मीरनामा ने हिंदी साहित्य की दुनिया को इतिहास और समाजशास्त्र से संपृक्त एक अनूठी किताब दी है और अब बारी है कहानियों की इस किताब की.
न्याय और हक की पुकार से लबरेज़ अशोक की कहानियां अपने समय और समाज पर एक करारी टिप्पणी करती हैं. इस टिप्पणी को गौर से देखने और समझने की ज़रूरत है.
वंदना राग
Itihas aur Samkal is a socio-political history of Kashmir from ancient period to our times. In it’s third edition within 13 months it has been welcomed by historians, journalists and students alike.