
नगरवासियों के लिये पाठ्यपुस्तक – बैर्तोल्त ब्रेष्त
उज्जवल भट्टाचार्य ने पहले भी ब्रेख्त की कविताओं का ख़ूब अनुवाद किया है. ये ताज़ा अनुवाद उन्होंने ख़ास हमारे लिए उपलब्ध कराए हैं. हाल ही में विश्व कविता के अनुवादों की किताब ‘लम्हे लौट आते हैं‘ दख़ल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है जिसमें बैरतोल्त ब्रेष्ट, एरिष फ़्रीड, ग्युंटर ग्रास, पाब्लो नेरूदा, निकोनार पार्रा, ओक्टोवियो पाज़, नाज़िम हिकमत, बिस्लावा चिम्बोर्सका, बेई दाओ, ख़ालिक अनवर, फ़ारूख़ फ़ारोख़ज़ाद सहित दुनिया भर के 22 कवियों की सौ कविताओं के अनुवाद संकलित हैं.
———————————————
एक
विदा लो अपने साथियों से स्टेशन पर
सुबह शहर जाओ गलाबंद जैकेट पहनकर
कोई कमरा ढूंढ़ो और फिर अगर तुम्हारा साथी थपकी दे
मत खोलो दरवाज़ा, मत खोलो,
बल्कि
सारे निशान मिटा डालो !
अगर मां-बाप मिल जाएं हैम्बर्ग या किसी दूसरे शहर में
बगलें झाँको, घूम जाओ मोड़ पर, पहचानो मत उन्हें
चेहरा ढक लो टोपी से, जो उनसे तोहफ़े में मिला था
मत दिखाओ, अपना चेहरा मत दिखाओ
बल्कि
सारे निशान मिटा डालो !
खाओ गोश्त, जो मौजूद है ! बचाना नहीं है !
पानी बरसे, तो किसी भी घर में घुस जाओ,
बैठ जाओ किसी भी कुर्सी पर, जो मौजूद हो
पर बैठे मत रह जाना ! और अपनी टोपी मत छोड़ जाना !
मैं कहता हूं तुमसे :
सारे निशान मिटा डालो !
कुछ भी कहना हो, दो बार मत कहना
अगर अपने विचार दूसरों के मुंह से सुनाई दे : नकार जाओ.
जिसने दस्तख़त न किया हो, जो अपनी तस्वीर न छोड़ गया हो
जो मौजूद ही न था, जिसने कुछ कहा ही नहीं
कैसे वह किसी की पकड़ में आ सकता है !
सारे निशान मिटा डालो !
ख़याल रखना, अगर मौत की सोचते हो
क़ब्र पर कोई पत्थर न लगे जो बता दे कि तुम वहां पड़े हो
साफ़-साफ़ अक्षरों में, जो तुम्हें दिखा दे
तुम्हारी मौत की तारीख़ बता दे और तुम्हें पकड़वा दे !
फिर कहता हूं :
सारे निशान मिटा डालो !
(ऐसा मुझसे कहा गया था)
1926
दो
हम तुम्हारे पास हैं ऐसी एक घड़ी में, जब तुम्हें पता चलता है
कि तुम पांचवें पहिए हो
और तुम्हारी उम्मीद तुम्हें छोड़ जाती है.
हमे लेकिन
अभी तक इसका पता नहीं है.
हम देखते हैं
कि तुम बात करने में हड़बड़ाने लगते हो
तुम कोई लफ़्ज़ ढूंढ़ते हो, जिसे लेकर
भागा जा सके
क्योंकि तुम चाहते हो
कोई सनसनी न पैदा की जाय.
बातों के बीच तुम उठ खड़े होते हो
तुम भुनभुनाने लगते हो, जाना चाहते हो
हम कहते हैं : ठहरो ! और हमें पता चल जाता है
कि तुम पांचवें पहिए हो.
लेकिन तुम बैठ जाते हो.
यानी कि तुम बैठे रहते हो हमारे पास ऐसी एक घड़ी में
जब हमे पता चल जाता है कि तुम पांचवें पहिए हो.
तुम्हें लेकिन
इसका पता नहीं रहता है.
हमारी सुनो : तुम
पांचवें पहिए हो
यह मत सोच लेना, कि मैं, चूंकि मैं ऐसा कहता हूं,
बदमाश हूं
गँड़ासे की ओर हाथ मत बढ़ाओ, बल्कि
एक गिलास पानी पी लो.
मुझे पता है, तुम अब सुन नहीं रहे हो
लेकिन
चीखो मत, कि दुनिया खराब है
इसे धीरे से कहो.
क्योंकि चार पहिए बहुत अधिक नहीं हैं
बल्कि पाँचवाँ पहिया
और दुनिया ख़राब नहीं है
बल्कि
मर चुकी है.
(यह तुम सुन चुके हो !)
1926
तीन
हम तुम्हारे घर से जाना नहीं चाहते हैं
हम चूल्हे को तोड़ना नहीं चाहते हैं
हम हँड़िया को चूल्हे पर रखना चाहते हैं.
घर, चूल्हा और हँड़िया रह सकते हैं
और तुम्हे गायब होना है आसमान में धूंए की तरह
जिसे कोई नहीं रोकता.
अगर तुम हमसे चिपके रहते हो, हम दूर चले जाएंगे
अगर तुम्हारी औरत रोती है, हम टोपियों से चेहरे ढक लेंगे
पर अगर वे तुम्हें पकड़ ले जाते हैं, हम तुम्हारी ओर इशारा करेंगे
और कहेंगे : यही रहा होगा.
हमें पता नहीं, क्या आनेवाला है, और हमारा कोई सुझाव भी नहीं
पर तुम्हें हम कतई नहीं चाहते हैं.
जब तक तुम गायब न हो जाओ
खिड़कियों पर पर्दा गिरा रखा जाय, ताकि कहीं सुबह न हो जाय.
शहरों को बदलने की इजाज़त दी जाएगी
लेकिन तुम्हें नहीं.
पत्थरों से बातें की जाएंगी
पर तुम्हें हम ख़त्म करना चाहते हैं
तुम्हें जीना नहीं है.
किन्हीं भी झूठों पर हमें यकीन करना पड़े :
तुम्हें नहीं होना है.
(ऐसे ही बोलते हैं हम अपने पुरखों से)
1926
चार
मुझे पता है, मुझे किस चीज़ की ज़रूरत है.
मैं बस यूं ही शीशे में झाँकती हूँ
और देखती हूँ, कि मुझे
अधिक नींद की ज़रूरत है, वो मर्द
जो मेरा है नुकसान पहुँचाता है मुझे.
जब मैं ख़ुद को गुनगुनाते पाती हूँ, कहती हूँ मैं :
आज मैं ख़ुशदिल हूँ, यह अच्छा है
मेरी चमड़ी के लिए.
मैं कोशिश करती हूँ
कि दुरुस्त और तन्दुरुस्त रहा जाय, लेकिन
जान मैं नहीं लड़ाऊँगी, इससे
चेहरे पर झुर्रियाँ आने लगती हैं.
बाँटने लायक मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन
अपना हिस्सा मेरे लिए काफ़ी है.
सावधानी से खाती हूँ मैं, जीती हूँ
धीमी चाल से, मैं तरफ़दार हूँ
बीच के रास्ते का.
(उनको मैंने इसी तरह कोशिश करते देखा है)
1927
पाँच
मैं गर्द हूँ. अपने-आपसे
मुझे कोई उम्मीद नहीं है, सिवाय
कमज़ोरी, बेईमानी और सड़न के
पर अचानक एक दिन मुझे लगता है :
चीज़ें सुधरेंगी, हवा से तन चुका है
मेरा पाल, आ चुका है वक़्त मेरा, मैं
गर्द के बजाय कुछ बेहतर बन सकती हूँ –
तुरंत मैं उसमें जुट गई.
चूँकि मैं गर्द थी, देखा मैंने
जब मैं पीकर मस्त हुआ करती थी, पड़ी रहती थी
बस यूँ ही कहीं और मुझे पता नहीं होता था
कौन मुझ पर सवार है, अब मैं पीती नहीं हूँ –
मैं तुरंत इससे बाज़ आई.
अफ़सोस कि मुझे
महज़ ज़िन्दा भर रहने के लिए
करना पड़ा काफ़ी कुछ जो मुझे महंगा पड़ा,
ज़हर तो इस कदर लिया, जो
चार बैलों के लिए काफ़ी होता, लेकिन
सिर्फ़ इसी तरीके से
ज़िन्दा रह पाना मुमकिन था ; कभी-कभी तो मैं
अफ़ीम भी लेती रही, और मेरा चेहरा
मुरझाए पत्ते सा रह गया
लेकिन फिर मैंने शीशे में झाँकककर देखा
और तुरंत मैं इससे बाज़ आई.
ज़ाहिर है कि उन्होंने कोशिश की, मुझे सिफ़िलिस का रोगी
बनाने की, लेकिन उनसे यह
हो नहीं पाया; सिर्फ़ वे मुझे
संखिया ही दे पाए : मेरे
आगे-पीछे नालियाँ थीं, जिनमें से
मवाद निकलता गया दिन रात. किसने
सोचा होगा कि इस किस्म की औरत
फिर कभी मर्दों का दिमाग फेर सकती है ? –
मैंने तुरंत इसका बीड़ा उठाया.
ऐसा मर्द मुझे मंजूर न था, जिसने
मेरे लिए कुछ किया नहीं, और लिया मैंने
हर किसी को जिसकी मुझे ज़रूरत थी. मुझमें
शायद ही कोई अहसास रह गया है, मेरे अंदर सूखा ही रह जाता है
लेकिन
अक्सर मुझे लगता है, पलड़ा कभी ऊपर है कभी नीचे, लेकिन
कुल मिलाकर ऊपर ही.
अभी तक ऐसा है कि मैं अपने दुश्मन उस औरत को
कुतिया कहा करती हूँ और उसे दुश्मन समझती हूँ, क्योंकि
कोई मर्द उसकी ओर ताकता है.
लेकिन एक साल के अंदर
मेरी यह आदत छूट जाएगी –
मैं इसका बीड़ा उठा चुकी हूँ.
मैं गर्द हूँ, लेकिन
हर चीज़ मेरे काम आनी चाहिए, मैं
ऊपर चढ़ती जा रही हूँ, मेरे बिना
काम नहीं चलेगा, मैं आनेवाले कल की योनि हूँ
जल्द ही मैं गर्द नहीं रह जाऊँगी, बल्कि
मज़बूत कंक्रीट, जिनसे
शहर बनाए जाते हैं.
(एक औरत को मैंने ऐसा कहते सुना)
1927
छः
वह सड़क से गुज़रता गया, टोपी गर्दन पर लटकी थी !
वह हर इन्सान की ओर ताकता गया और गर्दन हिलाता गया
वह हर शो केस के सामने खड़ा रह गया
(और हर किसी को पता है कि वह ख़त्म हो चुका है !)
उन्हें उसकी बात सुननी चाहिए थी, उसने कहा था कि वो
अपने दुश्मन के साथ संजीदगी से बातें करेगा
अपने मकान मालिक का रवैया उसे पसंद नहीं है
सड़क भी ठीक से साफ़ नहीं की गई है
(दोस्तों को उससे कोई उम्मीद नहीं रह गई है)
बहरहाल वह अभी एक मकान बनवाएगा
बहरहाल वह अभी सोचकर देखेगा
बहरहाल वह फ़ैसला देने में जल्दबाज़ी नहीं करेगा
(वह ख़त्म हो चुका है, उसके अंदर कुछ नहीं रह गया है)
(मैंने लोगों को ऐसा कहते सुना है)
1926
सात
ख़तरे की बात मत कीजिए.
झँझरी से होकर आप यूँ भी टंकी तक नहीं पहुँच सकते :
आपको बाहर आना पड़ेगा.
बेहतर होगा कि अपनी केतली आप छोड़ जाइए
आपको देखना है कि आप ख़ुद बच निकल सकें.
पैसे तो आपके पास होने ही चाहिए
मैं पूछूँगा नहीं, वे आपको मिले कहाँ से
लेकिन पैसों के बिना आपको आने की ज़रूरत ही नहीं.
और यहाँ आप रह नहीं सकते, महाशय !
यहाँ लोग आपको जानते हैं.
अगर मैं आपको ठीक से समझ सका हूँ
इससे पहले कि आप आसरा छोड़ दें
कुछ एक कबाब तो आप खाना ही चाहेंगे.
अपनी बीवी को रहने दीजिए, जहां वो है !
उसकी ख़ुद दो बाँहें हैं
इसके अलावा उसकी दो जाँघें हैं
(जिनसे आपको अब कोई मतलब नहीं, महाशय !)
देखिए, कि आप ख़ुद बच निकल सकें !
अगर आपको अभी और कुछ कहना है, फिर
मुझे कह डालिए, मैं उसे भूल जाऊँगा.
अब आपको अपने नज़रिए की हिफ़ाज़त नहीं करनी है :
कोई नहीं रह गया है, जो आपको देखे.
अगर आप बच निकल सकें
फिर आप उससे कहीं अधिक कर चुके होंगे
जितना एक इन्सान को करना होता है.
धन्यवाद देने की कोई ज़रूरत नहीं.
1926
आठ
अपने उन सपनों को भूल जाओ, कि तुम्हारे साथ
अलग ही सा बर्ताव किया जाएगा.
तुम लोगों की माँ ने तुमसे जो कहा था
ज़रूरी नहीं कि वो सच हो !
अपने करार जेब में ही रखे रहो
उन पर यहाँ अमल नहीं किया जाएगा.
अपनी इन उम्मीदों को भूल जाओ
कि तुम्हें सदर चुनने की सोची गई है.
पर क़ायदे से अपनी तैयारी जारी रखो
तुम्हें बिल्कुल दूसरे तरीके से पेश आना है
ताकि तुम्हें रसोई में बर्दाश्त कर लिया जाय.
तुम्हें अपना कखग अभी सीखना है.
और यह कखग है :
तुमसे निबट लिया जाएगा.
सोचने की ज़रूरत नहीं, कि तुम्हें कहना क्या है :
तुमसे कुछ भी पूछा नहीं जाएगा.
खानेवाले सब आ चुके हैं
ज़रूरत है, तो सिर्फ़ कीमा की.
लेकिन इसकी वजह से
तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी है !
1926
नौ
एक इन्सान से चार माँगें
अलग-अलग दिशाओं से अलग-अलग वक़्त में
यहाँ तुम्हारा घर है
यहाँ तुम्हारी चीज़ों के लिए जगह है
अपने असबाब को पसंद के मुताबिक रख लो
कहो, तुम्हें किस चीज़ की ज़रूरत है
यहाँ चाभी है
यहाँ रह जाओ.
यहाँ हम सबके लिए जगह है
और तुम्हारे लिए एक कमरा बिस्तर के साथ
तुम काम कर सकते हो अहाते में
तुम्हारी अपनी अलग थाली है
हमारे पास रहो
यहाँ सोने की तुम्हारी जगह है
बिस्तर तरोताज़ा है
अभी उसमें कोई सोया हुआ था.
अगर तुम छिद्रान्वेषी हो
फिर गमले के पानी में जस्ते का चम्मच धो लो
फिर वह साफ़ हो जाएगा
कोई बात नहीं, यहाँ रहो.
यह है कमरा
जल्दी करो, नहीं तो वहाँ भी रह सकते हो
रातभर के लिए, पर उसके पैसे अलग से देने पड़ेंगे
तुम्हें परेशान नहीं करूँगा
और हाँ, मैं नाराज़ नहीं हूँ.
यहाँ तुम उतने ही क़ायदे से हो, जितना कि और कहीं.
यानी कि यहाँ रह सकते हो.
1926
दस
अगर मैं बेजान तरीके से
तुमसे बातें करता हूँ
बिल्कुल सूखे अल्फ़ाज़ में
तुम्हारी ओर देखे बिना
(लगता है मैं तुम्हें पहचानता नहीं
तुम्हारी ख़ास बनावट और परेशानियों को)
फिर मैं वैसे ही बातें करता हूँ
जैसी कि सच्चाई है
(कड़वी सच्चाई, तुम्हारी बनावट के ज़रिये बेहद ईमानदार
जिसे तुम्हारी परेशानियों की परवाह नहीं)
और मुझे लगता है कि तुम इसे जानते नहीं
1927
Pingback: असुविधा : वरवर राव की पाँच कविताएँ - अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य